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आपराधिक कानून
आपराधिक मामलों में व्यक्तिगत समझौता
« »01-Sep-2023
भरवाड सनोत्शभाई सोंडाभाई बनाम गुजरात राज्य "गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा पीड़ित के बेटे के साथ समझौते के आधार पर हत्या के आरोपी को जमानत देने पर प्रश्न उठाये गए।" न्यायमूर्ति हिमा कोहली और राजेश बिंदल |
स्रोत- उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, उच्चतम न्यायालय ने भरवाड सनोत्शभाई सोंडाभाई बनाम गुजरात राज्य के मामले में गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा पारित एक आदेश पर निराशा व्यक्त की और गंभीर आपराधिक मामलों में व्यक्तिगत समझौते की अनुमति देने की उपयुक्तता पर प्रश्न खड़े किये।
- उपरोक्त मामले में गुजरात उच्च न्यायालय ने हत्या के एक मामले में एक आरोपी को उसके और शिकायतकर्त्ता के बीच समझौते के आधार पर जमानत दे दी।
पृष्ठभूमि
- यह घटना 17 सितंबर, 2021 को हुई, जब आरोपी ने पीड़ित पर हमला किया, जिसने बाद में चोटों के कारण दम तोड़ दिया।
- आरोपी ने जमानत के लिये दो बार ट्रायल कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था और ट्रायल कोर्ट ने कोई भी राहत देने से इनकार कर दिया क्योंकि वह भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 302 के तहत आरोप का सामना कर रहा था।
- आरोपी ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Criminal Procedure Code, 1973 (CrPC) की धारा 439 के तहत एक आवेदन दायर किया।
- आरोपी और शिकायतकर्त्ता के बीच समझौते को ध्यान में रखते हुए, उच्च न्यायालय ने उसे कुछ शर्तों के अधीन जमानत दे दी।
- उच्च न्यायालय के इस आदेश से व्यथित होकर उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की गई।
- उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया और आरोपी को ट्रायल कोर्ट के समक्ष तुरंत आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
- न्यायमूर्ति हिमा कोहली और राजेश बिंदल की पीठ जमानत आदेश को चुनौती न देने के लिये गुजरात राज्य की आलोचना की।
- पीठ ने इतने बड़े पैमाने के गंभीर आपराधिक मामलों में व्यक्तिगत निपटान की अनुमति देने की उपयुक्तता और गंभीर अपराधों के लिये किसी व्यक्ति की पूर्व दंड की कमी के आधार पर जमानत देने के निहितार्थ पर प्रश्न खड़े किये ।
- पीठ ने आगे कहा कि आरोपी किसी भी राहत का हकदार नहीं है और भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत गंभीर अपराध के संबंध में जमानत पर रिहा होने से पहले वह बमुश्किल छह महीने तक हिरासत में रहा था। उनके पूर्ववृत्त भी अपराध करने की ओर उनकी प्रवृत्ति का संकेत देते हैं।
कानूनी प्रावधान
भारतीय दंड संहिता की धारा 302,
- भारतीय दंड संहिता की धारा 302 में हत्या के लिये दंड का प्रावधान किया गया है। इस धारा के अनुसार-
- जो कोई भी हत्या करेगा उसे मौत या आजीवन कारावास की सज़ा दी जाएगी और जुर्माना भी देना होगा।
- भारतीय दंड संहिता की धारा 300 के तहत हत्या से निपटा जाता है और यह अपराध गैर-जमानती, संज्ञेय और सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 439
- यह धारा जमानत के संबंध में उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय की विशेष शक्तियों से संबंधित है। इस धारा के अनुसार –
(1) उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय यह निदेश दे सकता है कि–
(क) किसी ऐसे व्यक्ति को, जिस पर किसी अपराध का अभियोग है और जो अभिरक्षा में है, जमानत पर छोड़ दिया जाए और यदि अपराध धारा 437 की उपधारा (3) में विनिर्दिष्ट प्रकार का है, तो वह ऐसी कोई शर्त, जिसे वह उस उपधारा में वर्णित प्रयोजनों के लिये आवश्यक समझे, अधिरोपित कर सकता है;
(ख) किसी व्यक्ति को जमानत पर छोड़ने के समय मजिस्ट्रेट द्वारा अधिरोपित कोई शर्त अपास्त या उपांतरित कर दी जाए :
परंतु उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय किसी ऐसे व्यक्ति की, जो ऐसे अपराध का अभियुक्त है जो अनन्यतः सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय है, या जो यद्यपि इस प्रकार विचारणीय नहीं है, आजीवन कारावास से दंडनीय है, जमानत लेने के पूर्व जमानत के लिये आवेदन की सूचना लोक अभियोजक को उस दशा के सिवाय देगा जब उसकी, ऐसे कारणों से, जो लेखबद्ध किये जाएँगे यह राय है कि ऐसी सूचना देना साध्य नहीं है।
(2) एक उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय निर्देश दे सकता है कि इस अध्याय (अध्याय 33) के तहत जमानत पर रिहा किये गए किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाये और उसे हिरासत में भेजा जाए। - संदीप कुमार बाफना बनाम महाराष्ट्र राज्य (वर्ष 2014) में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि ऐसी स्थितियों में जहाँ आरोपी ने जमानत के लिये पहली बार में मजिस्ट्रेट से संपर्क नहीं किया है, वह CrPC की धारा 439 के तहत जमानत के लिये सीधे सेशन न्यायालय या उच्च न्यायालय से संपर्क कर सकता है।